भारत में भी इंटरनेट के बढ़ते उपयोग के चलते बहुत से लोग कई आधुनिक सुविधाओं का इस्तेमाल करते हैं और वाई-फाई के माध्यम से इंटरनेट का उपयोग करते हैं। मगर ऐसे लोगों को जरूरत है सावधान रहने की, क्योंकि आपके वाई-फाई कनेक्शन का कोई भी दुरुपयोग कर सकता है। आज कम्प्यूटिंग तकनीक के उन्नत होने के साथ ही इस तकनीक का गलत प्रयोग करने वाले लोगों की संख्या में तीव्र गति से वृद्धि हो रही है। इसका सबसे भयावह उदाहरण अहमदाबाद में हाल ही में हुए धमाकों के बाद सामने आया है।
अहमदबाद में विस्फोट से पाँच मिनट पूर्व इंडियन मुजाहिदीन नामक आतंकवादी संगठन ने टीवी चैनलों को कथित रूप से एक ई-मेल भेजा था, जिसका स्रोत एसटीएस ने जल्दी ही पता लगा लिया था और नवी मुंबई के एक फ्लैट में छापा मारकर वहाँ रह रहे अमेरिकी नागरिक हेवुड्स को गिरफ्तार कर लिया गया। यह संभव हो सका आईपी एड्रेस (इंटरनेट प्रोटोकॉल एड्रेस) के जरिये, मगर जब हेवुड्स से एटीएस द्वारा पूछताछ की गई तो उन्होंने चौंकाने वाली जानकारी दी। उन्होने बताया कि मैं अपने लैपटॉप पर वाई-फाई (वायरलेस इंटरनेट फ्रीक्वेंसी) के माध्यम से इंटरनेट का इस्तेमाल करता हूँ और इस साल जनवरी में बीएसएनएल से इस बात की शिकायत कर चुका हूँ कि मेरे इंटरनेट के बिल बहुत ज्यादा आ रहे हैं और जब टीवी चैनलों को ई-मेल भेजा गया, तब मेरा वाई-फाई कनेक्शन चालू था।
बढ़ते आधुनिकीकरण और सिमटती दुनिया में सभी प्रकार की सूचनाएँ डिजिटल रूप में परिवर्तित की जा रही हैं। बैंकों, वित्तीय संस्थानों, रक्षा समेत सभी सरकारी विभागों, परमाणु प्रतिष्ठानों के आँकड़े व खतरनाक हथियारों का संचालन, छोटी-बड़ी सभी प्रकार की कम्पनियों के सभी खाते व महत्वपूर्ण जानकारियों आदि को पूरी तरह कम्प्यूटराइज्ड कर दिया गया है। इनमें से कई प्रक्रियाएँ तो बिना कम्प्यूटर और इंटररनेट की सहायता के काम ही नहीं कर सकतीं।
परंतु इन सब पर 'हैकिंग' का बहुत बड़ा खतरा मँडरा रहा है, जिसके माध्यम से अनधिकृत तत्व आपके आँकड़ों और ई-मेल तक पहुँचकर कहर बरपा सकते हैं। इस सबके चलते आज हैकिंग शब्द इंटरनेट समुदाय में आतंक का पर्याय बन गया है। किसी दूसरे के इंटरनेट कनेक्शन को हैक करने के बाद लॉग-इन करने से हैकर उसका आईपी एड्रेस आसानी से उपयोग कर सकते हैं।
क्या होती है वायरलेस हैकिंग : वायरलेस हैकिंग वायरलेस नेटवर्क के अनधिकृत उपयोग को कहा जाता है। इस तरह की हैकिंग को कई तरीकों से अंजाम दिया जा सकता है। इसके लिए कई बार तकनीकी जानकारी का होना जरूरी होता है, पर थोड़ी जानकारी होने पर भी किया जा सकता है। एक बार अगर कोई हैकर नेटवर्क में दाखिल हो जाए तो उसके लिए सॉफ्टवेयर, नेटवर्क और सुरक्षा प्रणालियों में परिवर्तन कर देना कोई मुश्किल काम नहीं।वायरलेस इंट्रूजन : वायरलेस हैकिंग की शुरुआत करने से पहले हैकर उस वायरलेस कनेक्शन को ठीक से परख लेता है। इस प्रक्रिया को स्निफिंग कहा जाता है। इसके लिए एक 'पैकेट स्निफर' नाम का प्रोग्राम बनाया जाता है। यह प्रोग्राम नेटवर्क की सारी जानकारी जैसे ई-मेल, यूजर का नाम, पासवर्ड आदि हैकर तक पहुँचा देता है। स्निफिंग के और भी कई तरीके हैं, जिनमें निष्क्रिय तरीके से नेटवर्क की जाँच करना और मीडिया एक्सेस कंट्रोल एड्रेस को पता करना इत्यादि शामिल है।
हैकर निष्क्रिय तरीके से (बिना डाउनलोड और अपलोड के) वायरलेस नेटवर्क प्रसारित करने वाले हर एक रेडियो चैनल की गतिविधियों को जाँचता रहता है। इनके निष्क्रिय तरीके की वजह से इनका पता नहीं चल पाता और ये अपना काम आराम से कर पाते हैं।
वार्डड्रायविंग (Wardriving) एक और ऐसा तरीका है, जो इस वायरलेस हैकिंग के लिए प्रयोग में लाया जा रहा है। इसके लिए प्रयोग में आने वाला उपकरण एक वाई-फाई से सुसज्जित लैपटॉप हो सकता है अथवा एक पीडीए फोन या जीपीएस डिवाइस।
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अहमदबाद में विस्फोट से पाँच मिनट पूर्व इंडियन मुजाहिदीन नामक आतंकवादी संगठन ने टीवी चैनलों को कथित रूप से एक ई-मेल भेजा था, जिसका स्रोत एसटीएस ने जल्दी ही पता लगा लिया था और नवी मुंबई के एक फ्लैट में छापा मारकर वहाँ रह रहे अमेरिकी नागरिक हेवुड्स को गिरफ्तार कर लिया गया। यह संभव हो सका आईपी एड्रेस (इंटरनेट प्रोटोकॉल एड्रेस) के जरिये, मगर जब हेवुड्स से एटीएस द्वारा पूछताछ की गई तो उन्होंने चौंकाने वाली जानकारी दी। उन्होने बताया कि मैं अपने लैपटॉप पर वाई-फाई (वायरलेस इंटरनेट फ्रीक्वेंसी) के माध्यम से इंटरनेट का इस्तेमाल करता हूँ और इस साल जनवरी में बीएसएनएल से इस बात की शिकायत कर चुका हूँ कि मेरे इंटरनेट के बिल बहुत ज्यादा आ रहे हैं और जब टीवी चैनलों को ई-मेल भेजा गया, तब मेरा वाई-फाई कनेक्शन चालू था।
सब पर 'हैकिंग' का बहुत बड़ा खतरा मँडरा रहा है, जिसके माध्यम से अनधिकृत तत्व आपके आँकड़ों और ई-मेल तक पहुँचकर कहर बरपा सकते हैं। किसी दूसरे के इंटरनेट कनेक्शन को हैक करने के बाद लॉग-इन करने से हैकर उसका आईपी एड्रेस आसानी से उपयोग कर सकते हैं।उनके कहने का तात्पर्य था कि हो सकता है कि किसी ने उनकी बिंल्डिंग में घुसकर अपने लैपटॉप से हेवुड्स के वाई-फाई कनेक्शन से लॉग-इन कर यह ई-मेल कर दिया हो, जिस वजह से उनका आईपी एड्रेस इस ई-मेल में दर्ज हो गया हो। जानकारों का मानना है वाई-फाई कनेक्शन चालू होने पर यह काम कोई भी हैकर मात्र 10 मिनट में कर वहाँ से निकल सकता है।
बढ़ते आधुनिकीकरण और सिमटती दुनिया में सभी प्रकार की सूचनाएँ डिजिटल रूप में परिवर्तित की जा रही हैं। बैंकों, वित्तीय संस्थानों, रक्षा समेत सभी सरकारी विभागों, परमाणु प्रतिष्ठानों के आँकड़े व खतरनाक हथियारों का संचालन, छोटी-बड़ी सभी प्रकार की कम्पनियों के सभी खाते व महत्वपूर्ण जानकारियों आदि को पूरी तरह कम्प्यूटराइज्ड कर दिया गया है। इनमें से कई प्रक्रियाएँ तो बिना कम्प्यूटर और इंटररनेट की सहायता के काम ही नहीं कर सकतीं।
परंतु इन सब पर 'हैकिंग' का बहुत बड़ा खतरा मँडरा रहा है, जिसके माध्यम से अनधिकृत तत्व आपके आँकड़ों और ई-मेल तक पहुँचकर कहर बरपा सकते हैं। इस सबके चलते आज हैकिंग शब्द इंटरनेट समुदाय में आतंक का पर्याय बन गया है। किसी दूसरे के इंटरनेट कनेक्शन को हैक करने के बाद लॉग-इन करने से हैकर उसका आईपी एड्रेस आसानी से उपयोग कर सकते हैं।
क्या होती है वायरलेस हैकिंग : वायरलेस हैकिंग वायरलेस नेटवर्क के अनधिकृत उपयोग को कहा जाता है। इस तरह की हैकिंग को कई तरीकों से अंजाम दिया जा सकता है। इसके लिए कई बार तकनीकी जानकारी का होना जरूरी होता है, पर थोड़ी जानकारी होने पर भी किया जा सकता है। एक बार अगर कोई हैकर नेटवर्क में दाखिल हो जाए तो उसके लिए सॉफ्टवेयर, नेटवर्क और सुरक्षा प्रणालियों में परिवर्तन कर देना कोई मुश्किल काम नहीं।वायरलेस इंट्रूजन : वायरलेस हैकिंग की शुरुआत करने से पहले हैकर उस वायरलेस कनेक्शन को ठीक से परख लेता है। इस प्रक्रिया को स्निफिंग कहा जाता है। इसके लिए एक 'पैकेट स्निफर' नाम का प्रोग्राम बनाया जाता है। यह प्रोग्राम नेटवर्क की सारी जानकारी जैसे ई-मेल, यूजर का नाम, पासवर्ड आदि हैकर तक पहुँचा देता है। स्निफिंग के और भी कई तरीके हैं, जिनमें निष्क्रिय तरीके से नेटवर्क की जाँच करना और मीडिया एक्सेस कंट्रोल एड्रेस को पता करना इत्यादि शामिल है।
हैकर निष्क्रिय तरीके से (बिना डाउनलोड और अपलोड के) वायरलेस नेटवर्क प्रसारित करने वाले हर एक रेडियो चैनल की गतिविधियों को जाँचता रहता है। इनके निष्क्रिय तरीके की वजह से इनका पता नहीं चल पाता और ये अपना काम आराम से कर पाते हैं।
सुरक्षा सिर्फ सावधान रहकर की जा सकती है, अगर आपको लगे कि आपके कनेक्शन का बिल ज्यादा आ रहा है तो तुरंत विशेषज्ञ की सलाह लें।शुरुआत में इस स्निफर का पता चलना मुश्किल है, इसका पता तभी लगाया जा सकता है जब ये कुछ पैकेट नेटवर्क पर डाल देता है। कुछ हैकर के लिए इसके प्रमुख कारण 'वायर्ड इक्वीलेंट प्रायवेसी की' (डब्ल्यूईपी की- WEP key) प्राप्त करना होता है। घरेलू कम्प्यूटर पर चल रहे इंटरनेट कनेक्शन तो हैकरों द्वारा लम्बे समय तक बिना पता चले इस्तेमाल किए जा सकते हैं। कई बार हैकर्स का मुख्य उद्देश्य 'मेक' (मीडिया कंट्रोल एक्सेस) एड्रेसेस को एकत्रित करना होता है पर इसको प्राप्त करने के लिए कई बार हैकर कुछ पैकेट्स नेटवर्क पर छोड़ देता है। स्निफिंग से मिलने वाली जानकारी सीमित होने के कारण हैकर को सक्रिय होकर जानकारी प्राप्त करनी पड़ती है, परंतु इस प्रक्रिया में पकड़े जाने की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं, क्योंकि जो पैकेट नेटवर्क पर आते हैं, उन्हें आसानी से पता लगाकर पकड़ा जा सकता है।
वार्डड्रायविंग (Wardriving) एक और ऐसा तरीका है, जो इस वायरलेस हैकिंग के लिए प्रयोग में लाया जा रहा है। इसके लिए प्रयोग में आने वाला उपकरण एक वाई-फाई से सुसज्जित लैपटॉप हो सकता है अथवा एक पीडीए फोन या जीपीएस डिवाइस।
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